काल की महिमा || कबीर दास

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कबीर टुक टुक चोंगता, पल पल गयी बिहाय | जिन जंजाले पड़ि रहा, दियरा यमामा आय || ऐ जीव ! तू क्या टुकुर टुकुर देखता है ? पल पल बीताता जाता ...

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